शांत रस
रौद्र रस
भक्ति रस
श्रृंगार रस
प्रस्तुत पंक्तियों में भक्ति रस निहित है। जहाँ पर कविता में काव्य के माध्यम से भक्ति आदि भावों का अनुभाव होता है, वहाँ भक्ति रस होता है। रौद्र रस - कहि न सकत रघुवीर डर, लगे वचन जनु बान। नाइ राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरा प्रसाद।।” - तुलसीदास
Post your Comments