वीभत्स रस
वात्सल्य रस
वीर रस
भक्ति रस
प्रस्तुत पंक्तियों में भक्ति रस है। वाल्मीकि की महिमा का बखान करते हुए श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि परमब्रह्मा राम का नाम उलटा (मरा-मरा) जपते-जपते वाल्मीकि स्वयं ब्रह्मा के समान हो गये। इस प्रकार वाल्मीकि जपयज्ञ के भी प्रवर्तक माने जा सकते हैं। वीभत्स रस - “रक्त-मांस के सड़े, पंक से उमड़ रही है। महाघोर दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा।।”
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