इसने 40000 से अधिक अभियोगाधीन कैदियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया।
सरकार ने माना कि अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर अमल किया जाना चाहिए ताकि कैदियों के बुनियादी मानव अधिकारों की पवित्रता का सम्मान किया जा सके।
अदालतों ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के औचित्य और जरूरत को स्वीकार किया है।
इसमें सरकार को देश के पर्यावरण में सुधार लाने की दिशा में काम करने का निर्देश दिया है।
इन्दिरा साहनी केस (1992) में ऐतिहासिक फैसले में (जिसे मंडल विवाद पर फैसले की तरह याद किया जाता है) सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ापन की कसौटी बना दी थी। साथ ही इसे तय करने के लिए एक नई व स्वतंत्र संस्था ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के निर्माण का आदेश भी दिया था। उसके बाद से आरक्षण के मामले की सिफारिश इसी संस्था के जरिए होती है। इसी केस में अदालतों ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के औचित्य और जरूरत को स्वीकार किया।
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