हास्य
करुण
शान्त
श्रृंगार
प्रस्तुत पंक्तियों में श्रृंगार रस है। यहाँ राम ‘आलम्बन’, सीता ‘आश्रय’, कंकन के नग में परछाई देखना ‘उद्दीपन’, राम की परछाई को देखना आदि अनुभाव, स्तम्भ, हर्ष आदि संचारीभाव हैं। जो इन सबसे पुष्ट होकर संयोग श्रृंगार रस का परिपाक करता है। हास्य - आगे चले बहुरि रघुराई। पाछे लरिकन धुनी उड़ाई।।
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