रौद्र रस
करुण रस
वात्सल्य रस
भयानक रस
उपर्युक्त पंक्तियों में रौद्र रस निहित है, क्योंकि उक्त पंक्तियों में क्रोध अथवा रौद्र की भाषा झलक रही है। वात्सल्य रस - कबहुँ चितै प्रतिबिंब खंभ में लवनी लिये खवावत। दुरि देखत जसुमति यह लीला हरखि अनन्द बढ़ावत।।”
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