प्रथम चार चरण रोला के और अन्तिम दो चरण उल्लाला के
प्रथम दो चरण रोला के और अन्तिम चार चरण उल्लाला के
प्रथम चार चरण चौपाई के और अन्तिम चरण दोहा के
उपर्युक्त में से कोई नहीं
छप्पय मात्रिक विषम और संयुक्त छन्द है। इस छन्द के छह चरण होते हैं। प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के। प्रथम-द्वितीय और तृतीय-चतुर्थ के योग होते हैं। छप्पय में उल्लाला के सम-विषम चरणों का योग है। यह योग 15+13=28 मात्राओं वाला ही अधिक प्रचलित है; जैसे - जहाँ स्वतन्त्र विचार न बदले मन में मुख में, जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में। सबको जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो, शान्तिदायिनी निशा, हर्षसूचक वासर हो।। सब भाँति सुशासित हो जहाँ, समता के सुखकर नियम। बस उसी स्वशासित देश में, जगें हे जगदीश हम।।
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