रोला
दोहा
चौपाई
कवित्त
निराला जी कवित्त छन्द को हिन्दी का जातीय छन्द मानते हैं। हिन्दी में मुक्त काव्य कवित्त-छन्द की बुनियादी पर सफल हो सकता है। निराला के अनुसार, यह छन्द चिरकाल से इस जाति के कण्ठ का हार हो रहा है। यदि हिन्दी का ‘जातीय छन्द’ चुना जाय, तो वह यही होगा। ‘निराला’ की कविता ‘जूही की कली’ मुक्तक छन्द का उदाहरण है।
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