निर्देश - निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे सम्बन्धित प्रश्नों के दिये गये बहु-विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: व्यक्ति-सम्बन्ध-हीन सिद्धान्त-मार्ग निश्चयात्मिका बुद्धि को चाहे व्यक्त हो, पर प्रवर्तक मन को अव्यक्त रहते हैं। वे मनोरजनकारी तभी लगते है, जब किसी व्यक्ति के जीवन-क्रम के रूप में देखे जाते है। शील की विभूतिया अनन्त रूपो में दिखाई पड़ती है। मनुष्य जाति ने जब से होश संभाला. तब से वह इन अनन्त रूपों को महात्माओं के आचरणों तथा आख्यानो और चरित्र- सम्बन्धी पुस्तको में देखती चली आ रही है। जब इन रूपों पर मनुष्य मोहित होता है, तब सात्विक शील की ओर आप से आप आकर्षित होता है। शून्य सिद्धान्त वाक्यों में कोई आकर्षण शक्ति या प्रवृत्तिकारिणी क्षमता नही होती। 'सदा सत्य बोलो', 'दूसरों की भलाई करो', 'क्षमा करना सीखो ऐसे-ऐसे सिद्धान्त वाक्य किसी को बार-बार बकते सुन वैसा ही क्रोध आता है जैसे किसी बेहूदे की बात सुनकर। जो इस प्रकार की बातें करता चला जाय उससे चट कहना चाहिए-'बस चुप रहो, तुम्हें बोलने की तमीज नहीं, तुम बच्चों या कोलभीलों के पास जाओ। ये बातें हम पहले से जानते हैं। मानव-जीवन के बीच हम इसके सौन्दर्य का विकास देखना चाहते हैं। यदि तुम्हें दिखाने की प्रतिभा या शक्ति हो तो दिखाओ, नहीं तो चुपचाप अपना रास्ता लो।' गुण प्रत्यक्ष नहीं होता। उसके आश्रय और परिणाम प्रत्यक्ष होते हैं। अनुभावात्मक मन को आकर्षित करने वाले आश्रय और परिणाम हैं, गुण नहीं। ये ही अनुभूति के विषय हैं। अनुभूति पर प्रवृत्ति और निवृत्ति निर्भर हैं। अनुभूति मन की पहली क्रिया है, संकल्प-विकल्प दूसरी। अत सिद्धान्त-पथों के सम्बन्ध में जो आनन्दानुभव करने की बाते हैं, जो अच्छी लगने की बातें है, वे पथिकों में तथा उसके चारों ओर पाई जाएगी। सत्पथ के दीपक उन्हीं के हाथ में है - या वे ही सत्पथ के दीपक है। सत्वोन्मुख प्राणियों के लिए ऐसे पथिको के सामीप्य-लाभ की कामना करना स्वाभाविक ही है। व्यक्ति-सम्बन्धहीन सिद्धांत मार्ग मनोरंजनकारी कब लगते हैं

  • 1

    निश्चयात्मक बुद्धि के अभाव में।

  • 2

    सिद्धआंतकारी वाक्यों को सुनकर।

  • 3

    जब वे किसी व्यक्ति के जीवनक्रम के रूप में देखे जाते हैं।

  • 4

    सत्वोन्मुख प्राणियों के वचन सुनकर।

Answer:- 3

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