आदिकाल से लेकर भक्तिकाल तक की रचनाएं पुरानी हिन्दी में मिलती है
आदिकालीन हिन्दी उलटबाँसी शैली के कारण दुरूह है
पुरानी हिन्दी में ब्राहम्णों के कर्मकांड एवं वर्णाश्रम व्यवस्था पर तीव्र प्रहार किया गया है
अपभ्रंशाभास हिन्दी भक्तिकाल तक आते-आते काव्य भाषा के रूप में स्थापित हो जाती है और हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है
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