हाल ही में, ओडिशा सरकार ने वज्रपात (बिजली गिरने) से होने वाली बढ़ती मौतों से निपटने के लिए ताड़ के पेड़ लगाने को मंजूरी दी है।
योजना के अनुसार, सरकार वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान पूरे राज्य में लगभग 1.9 मिलियन ताड़ के पेड़ लगाएगी। ओडिशा ने मौजूदा ताड़ के पेड़ों को काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। निजी भूमि पर ताड़ के पेड़ काटने से पहले लोगों को वन विभाग से अनुमति लेनी होगी।
ओडिशा में वज्रपात से हुई मौतें
पिछले 11 वर्षों में राज्य में वज्रपात से लगभग 3,800 लोगों की जान गयी। पिछले 3 वित्तीय वर्षों में उड़ीसा में 791 मौतें दर्ज की गईं, जो वज्रपात की बढ़ती घटनाओं को दर्शाता है।
2 सितंबर, 2023 को ओडिशा में दो घंटे में 61,000 वज्रपात की घटनाएं दर्ज की गईं, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई। वर्ष 2015 से वज्रपात को राज्य-विशिष्ट आपदा के रूप में मान्यता दी गई है।
ओडिशा में वज्रपात चिंता का विषय क्यों है?
ओडिशा की उष्णकटिबंधीय जलवायु और गर्म, शुष्क परिस्थितियां इसे वज्रपात के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं।
क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (CROPC) और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की वार्षिक लाइटनिंग रिपोर्ट 2023-2024 में कहा गया है कि ओडिशा सहित पूर्वी और मध्य भारत में बादल से जमीन पर वज्रपात की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं।
जलवायु परिवर्तन ने वज्रपात की गतिविधि को तीव्र कर दिया है तथा प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ इसमें लगभग 10% की वृद्धि हो रही है।
चूंकि 96% वज्रपात की घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं और ओडिशा की 80% से अधिक आबादी कृषि कार्य में लगी हुई है, इसलिए कई लोग लंबे समय तक घरों से बाहर रहने के कारण इसके प्रति संवेदनशील होते हैं।
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