रौद्र रस का स्थायी भाव 'क्रोध' है| विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति, देश, समाज या धर्म का अपमान या अपकार करने से उसकी प्रतिक्रिया में जो क्रोध उतपन्न होता है, वह विभाव, अनुभव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर असह्य हो जाता है और तब रौद्र रस उतपन्न होता है|
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