इसे राज्य के लिए आय का एक स्त्रोत, जनता द्वारा दिया जाने वाला एक प्रकार का कर, माना जाता था।
यह गुप्त साम्राज्य के मध्य प्रदेश तथा कठियावाड़ क्षेत्रों में पूर्णतः अविद्यमान था।
बलात् श्रमिक साप्ताहिक मजदूरी का हकदार होता था।
मजदूर के ज्येष्ठ पुत्र को बलात् श्रमिक के रुप में भेज दिया जाता था।
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