जीवन में बहुत अंधकार है और अंधकार की ही भाँति अशुभ और अनीति है| कुछ लोग इस अंधकार को स्वीकार कर लेते हैं और तब उनके भीतर जो प्रकाश तक पहुँचने और पाने की आकांक्षा थी, वह क्रमशः क्षीण होती जाती है| मैं अंधकार की इस स्वीकृति को मनुष्य का सबसे बड़ा पाप कहता हूँ| यह मनुष्य का स्वयं अपने प्रति किया गया अपराध है| उसके दूसरों के प्रति किए गए अपराधों का जन्म इस मूल पाप से ही होता है| यह स्मरण रहे कि जो व्यक्ति अपने ही प्रति इस पाप को नहीं करता है, वह किसी के भी प्रति कोई पाप नहीं कर सकता है| किन्तु कुछ लोग अंधकार के स्वीकार से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जाते हैं| उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है| इस गद्यांश में 'उपक्रम' का अर्थ है

  • 1

    आरम्भ, शुरुआत

  • 2

    तैयारी, योजना

  • 3

    आयोजन, समारोह

  • 4

    व्यवसाय, कार्य

Answer:- 4
Explanation:-

गद्यांश के अनुसार, कुछ लोग बुराइयों और अन्यायों की स्वीकारिता से बचने के लिए उनको अस्वीकार करने में लग जाते हैं, जैसे कि ऐसी प्रवृत्ति होती ही नहीं है और इस तरह जीवन में उनकी यही अस्वीकारिता कार्य बन जाती है|

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