निर्देश - गद्यांश पढ़े एवं निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चुनें- भारतीय धर्म ग्रंथ में अनेक तथ्यों का वर्णन मिलता है। किसी भी पुराण में अवतारवाद को प्रधान अंग माना गया है। प्राय: सभी पुराणों में अवतार का प्रसंग आया है। कहीं दस अवतारों की धारणा की पुष्टि हुई है तो कहीं चौबीस अवतारों की। जैन और बौद्ध धर्म को अपने में आत्मसात करने के उद्देश्य से जैन धर्म के आदि प्रवर्तक ऋषभदेव चौबीस अवतारों में हुए और बुद्धदेव के नवें अवतार में। सबसे आश्चर्य और कौतूहल की बात है कि संसार के ये ही दो धर्म है जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते। भारतीय परिपाटी के अनुसार आस्तिक और नास्तिक का भेद ईश्वर को मानने या न मानने पर निर्भर नहीं रहा, बल्कि वेद के मानने या न मानने पर रहा है। इसी कारण सांख्य तथा मीमांसा की गणना नास्तिक दर्शन में होती चली आई है। किंतु जैन और बौद्ध धर्म तो ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते। फिर भी इनके प्रवर्तकों को अवतारों की कोटि में स्थान देना हिन्दू धर्म के कट्टर नेताओं के ह्रदय और वाणी में संसार के अन्य धर्मों के प्रवर्तकों के प्रति अत्यधिक सम्मान और आदर पाया जाता है। आधुनिक युग में भी अवतारवाद का ही महत्व है, क्योंकि मानव प्राणी में आज भी अवतारवाद पर ही विश्वास है। वैसे हिन्दू धर्म में अवतारवाद को ही श्रेष्ठ मानते हैं। हर हिन्दू समाज में अवतारवाद के ही ऊपर बल देते हैं, क्योंकि उन्हीं में विश्वास है।   'सांख्य तथा मीमांसा' की गणना किसमें होती चली आई है?

  • 1

    ईश्वर दर्शन में

  • 2

    आस्तिक दर्शन में

  • 3

    नास्तिक दर्शन में

  • 4

    मूर्ति दर्शन में

Answer:- 3

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