कुषाण काल से
गुप्त काल से
वर्धन काल से
राजपूत काल से
भूमिस्पर्श मुद्रा की सारनाथ बुद्ध प्रतिमा गुप्त काल की है। इसकी आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, गम्भीर मुस्कान एवं शांत ध्यान मग्न मुद्रा भारतीय कला की सर्वोच्च सलता का प्रदर्शन करता है। बुद्ध की 'भूमिस्पर्श मुद्रा' से तात्पर्य अपने तप की 'शुचिता और निरंतरता' को बनाए रखने से है। बोधगया के मन्दिर के गर्भगृह में बुद्ध की विशाल मूर्ति भूमिस्पर्श मुद्रा (मारविजय) में आसीन है। कुषाणों के समय कला एवं स्थापत्य की दो शैलियाँ प्रचलित थी- 1. गांधार कला 2. मथुरा कला गांधार कला को यूनानी बौद्ध कला भी कहते हैं। बुद्ध की मूर्ति सबसे पहले मथुरा कला में ही बनी थी।
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