लक्ष्मी बाई को
जीनत महल को
उपर्युक्त में से कोई नहीं
हजरत महल को
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानिओं में बेगम हजरत महल को 'महकपरी' के नाम से जाना जाता है। इनके बचपन का नाम महुम्मदी खातून था जो पेशे से गणिका थी। जब बेचा गया तब यह शाही हरम में एक खावासिन के तौर पर आ गई। इसके बाद उन्हें शाही दलालों को बेंच दिया गया, जिसके बाद उन्हें 'परी' की उपाधि दी गई और वे 'महक परी' कहलाने लगी। जब अवध के नवाब ने उन्हें शाही हरम में शामिल किाय, तब वे बेगम हो गई, हजरत महल की उपाधि उन्हें अपने पुत्र बिरजिस कादिर के जन्म के बाद मिली।
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