ऋग्वेद में
यजुर्वेद में
सामवेद में
अथर्ववेद में
'यजुष' का शाब्दिक अर्थ है-यज्ञ, पूजा, श्राद्ध, आदर आदि। इस वेद के मन्त्रों का पाठ यज्ञ में अध्वर्यु नामक पुरोहित वर्ग करता है। इसकी वाजसनेयी संहिता में 40 अध्याय है। प्रारम्भ के 25 अध्याय विषय वस्तु की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। प्रथम और द्वितीय अध्याय में 'दर्श' एवं 'पोर्णमास' यज्ञों के मन्त्र संकलित हैं। तृतीय अध्याय में दैनिक 'अग्निहोत्री' तथा 'चातुर्मास्य' यज्ञ के मंत्रों का संग्रह है। चतुर्थ से अष्टम अध्याय पर्यन्त 'अग्निष्टोमादि' सोमयज्ञों एवं पशुबलि से सम्बन्धित मन्त्र प्राप्त होते हैं।
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