सविनय अवज्ञा आन्दोलन का
गृह शासन आन्दोलन का
खिलाफत आन्दोलन का
असहयोग आन्दोलन का
1920-21 में शुरू किये गये असहयोग आंदोलन में गाँधी जी ने एक वर्ष के भीतर स्वराज घोषित प्राप्ति का लक्ष्य रखा था। किन्तु समय सीमा पूरी होने से पहले 5 फरवरी 1922 को गोरखुपर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर एक भयानक घटना घटी जिसमें आंदोलनकारी भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिंदा जला दिया। चौरी-चौरा की घटना से गाँधी जी आहत होकर असहयोग आंदोलन समाप्त करने का निर्णय लिया। इस काण्ड में अनेक भारतीयों को अभियुक्त बनाया गया जिनमें 170 भारतीयों को मृत्यु दण्ड की सजा दी गई। पं. मदन मोहन मालवीय ने बुद्धिमत्तापूर्ण पैरवी करते हुए 151 लोगों को फाँसी से बचा लिया।
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