अश्वमेध से
राजसूय से
वाजपेय से
सौत्रामणि से
यजुर्वेद में विभिन्न यज्ञ तथा यज्ञीय विधि-विधानों का वर्णन है। सौत्रामणि यज्ञ में पशु और सुरा की आहुति दी जाती थी। ऋग्वेद में भी सुरा का उल्लेख मिलता है। सोम तथा सुरा आर्यों के मुख्य पेय थे। सोम अपनी मादकता के लिए विख्यात था। जिसे मूजवन्त पर्वत पर प्राप्त किया जाता था। यज्ञों के अवसर पर सोमरस पान करने तथा देवताओं को पीने के लिए उसे समर्पित करने की प्रथा थी। ऋग्वेद के नवें मण्डल में सोम की सोम, रस पीने के बाद उन्होंने अमरत्व प्राप्त कर लिया है तथा देवताओं को जान लिया है। ऋग्वेद में सुरा के दुष्परिणामों का उल्लेख हुआ है तथा बताया गया है कि लोग इसे पीकर मदांध हो जाते थे। सभा और समितियों में लड़ने झगड़ने लगते थे। सुरा की गणना क्रोध, द्दाुत, अज्ञान आदि अनिष्ट वस्तुओं के साथ की गयी है। इसलिए इसे निन्दनीय तथा त्याज्य बताया गया है।
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