विशेषाधिकारों का अभाव है
अवरोधी का अभाव है
प्रतिस्पर्द्धा का अभाव है
विचारधारा का अभाव है
सामाजिक समानता किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। इसका मूल निहितार्थ है कि समाज में विशेषाधिकारों का अभाव है अर्थात् सभी को समान अधिकार प्राप्त है। समानता की यह अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धान्त के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोगों सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाजिक व्यवस्थाओं और अलोकतंत्रिक हुकूमतों या नीतियों के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। इस लिहाज से समानता को स्थाई और सर्वाभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जा सकता है।
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