चार्वाक से
जैन से
बौद्ध से
सांख्य से
‘स्याद्वाद’ का सम्बन्ध जैन धर्म से है। ‘स्याद्वाद’ का अर्थ ‘सापेक्षतावाद’ होता है। यह जैन दर्शन के अन्तर्गत किसी वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्षित सिद्धान्त है। सापेक्षता का अर्थ ‘किसी से अपेक्षा से’ है। अपेक्षा के विचार से कोई भी चीज सत् भी हो सकती है असत् भी। इसी को ‘सत्तभंगी नय’ से समझाया जाता है। इसी का नाम स्याद्वाद है
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