चार्वाक से
जैन से
बौद्ध से
मीमांसा से
अपूर्ण का सिद्धान्त मीमांसा से सम्बन्धित है। मीमांसा दर्शन कर्म को ही महत्व देता है, जो अपनी शक्ति (अपूर्व) से फल प्रदान करने में सक्षम है। इसके लिए वे ईश्वर की सत्ता को आवश्यक नहीं मानते। मीमांसकों के ईश्वर सम्बन्धी विचार स्पष्ट नहीं है। इस दर्शन का प्रदान कर्म की महत्ता को प्रतिपादित करना है।
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