यह अवधारणाओं की समझ में अभाव पैदा करता है।
समझ के बजाय कार्यविधिक/प्रक्रियात्मक ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करता है।
अवधारणात्मक परिवर्तनों को प्रोत्साहित करने के लिए यह एक प्रभावशाली तरीका है।
यह विद्यार्थियों के दिमाग में भ्रांतियाँ उत्पन्न करता है।
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