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यह शिक्षण के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है।
यह शिक्षण को अधिक स्वतंत्रता नहीं देती।
इसमें अधिगम की अपेक्षा शिक्षण पर अधिक बल दिया जाता है।
रसानुभूति वाले पाठों के शिक्षण हेतु अधिक उपयुक्त नहीं
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