अपठित पद्यांश
अरूण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्म विभा पर-नाच रही तरू शिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुमकुम सारा।
लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये-समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करूणा जल।
लहरें टकराती अनंत की-पाकर जहाँ किनारा।
हेम-कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते-जब-जगकर रजनी भर तारा। ‘हेम-कुंभ’ में प्रयुक्त अलंकार कौन सा है -

  • 1

    अनुप्रास अलंकार

  • 2

    रूपक अलंकार

  • 3

    अर्थान्तरन्यास अलंकार

  • 4

    उत्प्रेक्षा अलंकार

Answer:- 2

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