आगमन विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर अग्रसर होती है।
निगमन विधि सामान्य से विशिष्ट की ओर, अमूर्त से मूर्ति की ओर अग्रसर होती है।
आगमन विधि 'खोज' को नष्ट करती है और चिंतन का उद्दीप्त करती है।
निगमन विधि में प्राधिकारी व्यक्ति द्वारा सूत्र को निश्चित या प्रस्तुत किया जाता है और उसके कंठस्थीकरण को प्रोत्साहित किया जाता है।
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