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आचार्य विनोबा भावे सर्वोदय सम्मेलन के सिलसिले में 18 अप्रैल, 1951 को तत्कालीन आंध्र प्रदेश के ‘नलगोंडा’ जिले में पहुंचे थे। यह जिला उस समय साम्यवादी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। इसी जिले के ‘पोचमपल्ली’ प्रवास के दौरान गांव के 40 हरिजन परिवारों के लिए भूमि की समस्या का समाधान तलाशते समय इसी गांव के जमींदार रामचंद्र रेड्डी ने 100 एकड़ भूमि देने का प्रस्ताव किया। यह स्वतः स्फूर्ति प्रस्ताव ही भूदान आंदोलन की उत्पत्ति का स्रोत बना। अक्टूबर, 1951 से 1957 तक विनोबा जी ने पूरे भारत में 50 मिलियन एकड़ भूमि भूमिहीनों के लिए प्राप्त करने के उद्देश्य से भूदान आंदोलन का नेतृत्व किया।
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