दुःख
दुःख समुदाय
दुःख निरोध
आत्मा की अमरता
बुद्ध के धर्म- सिद्धान्त में ‘आर्य सत्य’ का प्रधान योग था। जीवन में दुःख की अपरिहार्यता से उनके धर्म का आरम्भ हुआ था, जो आर्य सत्य था। वस्तुतः बुद्ध ने दुःख को आर्य सत्य के अन्तर्गत रखा था, जिसमें दुःख, समुदाय निरोध और निरोधगामी प्रतिपदा सम्मिलित थे। इन चार विभागों में बुद्ध-देशना के चिंतन का दिग्दर्शन होता है, जो चत्वारि आर्यसत्यानि (चार आर्य सत्य) के रुप में सन्निहित है। इन्हीं चार आर्य सत्यों का शास्ता ने उपदेश दिया। इसमें आत्मा की अमरता पर ही चिंतन एवं मनन किया गया है।
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