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‘जीवक चिंतामणि’ संगमयुगीन एक महाकाव्य है। इसे एक जैन पुस्तक माना जाता है। इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुतक्कदेवर को दिया जाता है। इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुतक्कदेवर को दिया जाता है। कहा जाता है कि पहले वह चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्षु बन गया। इस महाकाव्य में एक आदर्श नायक की जीवन कथा है जो कि युद्ध तथा शान्ति दोनों कलाओं में प्रवीण है। साथ ही वह सन्त तथा प्रेमी भी है। इस कालजयी रचना में श्रेष्ठ काव्य के सभी गुण विद्यमान हैं।
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