कपहक पुराण
चूर्णि
पण
दीनार
मौर्यों का प्रधान सिक्का ‘पण’ (चाँदी का) था। इसे ‘रुपक’ अथवा ‘रुप्य रुप’ भी कहते थे। यह 3/4 तोले के बराबर चाँदी का सिक्का था जो मौर्य काल में प्रचलित विनिमय का माध्यम था। अधिकारियों को वेतन आदि देने में इसी का प्रयोग होता था। इसके ऊपर सूर्य, चन्द्र, पीपल, मयूर, बैल, सर्प आदि खुदे होते थे। अतः इसे आहत सिक्का भी कहा जाता था। इस काल के सिक्के स्वर्ण, चांदी और ताँबे के बने होते थे। सोने के सिक्कों को ‘निष्क’ और ‘सुवर्ण’ कहा जाता था। चाँदी के सिक्कों को कार्षापण अथवा ‘धरण’ कहा जाता था। ताँबे के सिक्के ‘माषक’ कहलाते थे। छोटे-छोटे तांबे के सिक्के ‘काकणि’ कहे जाते थे। ये सिक्के शासकों, सौदागरों एवं निगमों द्वारा प्रचलित किये जाते थे तथा इन पर स्वामित्व सूचक चिन्ह लगाये जाते थे। राजकीय टकसाल के अधीक्षक को ‘लक्षणाध्यक्ष’ तथा मुद्राओं का परीक्षण करने वाला अधिकारी ‘रुपदर्शक’ कहलाता था।
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