बंजर भूमि
राजकीय भूमि का राजस्व
चुंगी
शिल्पकारों पर लगाया गया कर
मौर्यकाल में राजकीय भूमि से होने वाली आय को ‘सीता’ कहा जाता था। राजकीय कृषि भूमि का अध्यक्ष सीताध्यक्ष कहलाता था। राजकीय भूमि पर करद कृषक खेती करते थे। कृषि योग्य तैयार खेतों को कृषि करने के लिए किसानों को दे दिया जाता था। जो भूमि कृषि योग्य न हो, उसे यदि कोई खेती योग्य बना ले, तो वह भूमि उससे वापस नहीं ली जाती थी। इस राजकीय भूमि के अतिरिक्त ऐसी भूमि भी थी जो गृहपतियों तथा अन्य कृषकों की निजी भूमि होती थी, जिस पर वे खेती करते थे। ये लोग कर के रुप में राज्य को उपज का 1/4 भाग से लेकर 1/6 भाग तक देते थे।
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