चार्टर एक्ट, 1833
चार्टर एक्ट, 1853
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858
इंडियन काउंसिल एक्ट, 1861
चार्टर एक्ट, 1833 की धाराओं में सबसे महत्वपूर्ण धारा संख्या 87 थी, जिसमें यह कहा गया था कि ‘किसी भी भारतीय अथवा क्राउन की देशज प्रजा को अपने धर्म, जन्मस्थान, वंशानुक्रम, वर्ण अथवा इनमें से किसी एक कारणवश कंपनी के अधीन पद अथवा सेवा के अयोग्य नहीं माना जा सकेगा।” कालांतर में राजनैतिक आंदोलन में 1833 एक्ट की यह धारा प्रशासन में भागीदारी हेतु मुख्य आधार बनी।
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