विकृतचित्त
मत्त (अनैच्छिक)
शिशु
उपर्युक्त में से कोई नहीं
धारा 98 से, जबकि कोई कार्य जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण अपराध नहीं है तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में है।
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