भूमि पर
व्यवसाय पर
व्यापार पर
निजी आमदनी पर
‘शिष्ट’ नामक भूमिकर विजयनगर की आय का मुख्य साधन था। किसानों से उनकी उपज का 26% से 30% तक भाग भूमिकर के रुप में लिया जाता था। ब्राह्मणों के स्वामित्व वाली भूमि से उपज का 1/20, भाग तथा मंदिरों की भूमि से 1/30 भाग भूमिकर के रुप में वसूला जाता था।
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