केवल 1 सत्य है
1 & 2 दोनों सत्य है
1, 2, 3 सत्य है
उपर्युक्त में से कोई नही
धारा 405 → आपराधिक न्यास भंग
आपराधिक न्यायालय के तत्व →
आपराधिक न्यास भंग की परिभाषा के अधीन इसके तत्व निकल कर आते है जो कि निम्न हैं-
अभियुक्त में संपत्ति का न्यस्त किया जाना आवश्यक है
सीए नारायण बनाम स्टेट ए आई आर 1953 एस सी 478 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि किसी भी आपराधिक न्यास भंग के मुकदमे में जो व्यक्ति अभियुक्त है उसे संपत्ति का परिदान किया जाना आवश्यक है अर्थात अभियुक्त के पास वह संपत्ति होना चाहिए, जिस संपत्ति का दुर्विनियोग करके आपराधिक न्यास भंग का अपराध कार्य किया गया है।
अभियुक्त द्वारा संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग किया जाना अथवा संपत्ति को अपने उपयोग में लाना
आपराधिक न्यास भंग के मुकदमे के लिए यह आवश्यक होता है कि जो अभियुक्त है उसने संपत्ति का बेमानी से दुर्विनियोग किया हो या फिर वाह कपट या बेईमानी से उस न्यस्त की गई संपत्ति को उपयोग में ला रहा है,यह आपराधिक न्यास भंग का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है।
किसी व्यक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रति वारित करना मात्र या अपराध घटित नहीं कर देता जब तक कि उसका आशय दुर्विनियोग करने का नहीं रहा हो।
फिर न्यस्त संपत्ति को अपने स्वयं के लिए उपयोग करना भी आपराधिक न्यास भंग है।
स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति का उपयोग करने दिया जाना
यदि अभियुक्त व्यक्ति किसी न्यस्त संपत्ति को अपनी जानकारी में होते हुए किसी अन्य व्यक्ति को उस संपत्ति का उपयोग करने दे रहा है तथा ऐसा उपयोग करने का अधिकार अभियुक्त व्यक्ति ने यदि अपनी स्वेच्छा से दिया है तो यह आपराधिक न्याय भंग का अपराध बनता है। यह आपराधिक न्यास भंग के अपराध का तीसरा प्रमुख तत्व है।
स्त्री धन के संबंध में भी आपराधिक न्यास भंग का मामला सिद्ध करने का अधिकार दिया जा सकता है।
संपत्ति →
अपराधिक न्याय भंग की परिभाषा में संपत्ति शब्द का प्रयोग किया गया है। इस संपत्ति से अभिप्राय सभी प्रकार की चल व अचल संपत्तियों से है। संपत्ति में ऐसी कोई संपत्ति सम्मिलित है, जो इस धारा के अंतर्गत अपराध गठित करने के लिए योग्य हो।
संपत्ति की योग्यता का अर्थ है, संपत्ति की कोई कीमत होनी चाहिए उसका कोई मूल्य होना चाहिए कोई ऐसा सारवान मूल्य होना चाहिए जो संपत्ति के महत्व को बढ़ाता है।
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