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धारा 377 आईपीसी » प्रकृति विरुद्ध अपराध
अप्राकृतिक यौन संबंध पर कानून
अब तक धारा 377 में क्या था ?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था। इसमें 10 साल या फिर जिंदगीभर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती। यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती। इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था। समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है। इसी समुदायों के लोग काफी लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे थे। यहां जानिए कि आखिर धारा 377 है क्या और क्यों इसे भारत में अपराध की श्रेणी में रखा गया था।
भारत में कब हुआ धारा 377 पर विवाद ?
धारा 377 का पहली बार मुद्दा गैर सरकारी संगठन ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाया था। इस संगठन ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को ‘‘गैरकानूनी’’ बताया था।
भारत से पहले इन देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं ?
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