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प्रत्य + एक
प्रति + एक
प्रति + ऐक
प्रत्ये + एक
‘प्रत्येक’ का सन्धि-विच्छेद ‘प्रति+एक’ होता है।
निष्ठुर
निर्विकार
नितान्त
निश्चित
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। ‘नितान्त’ में विसर्ग सन्धि नहीं है।
मतैक्यम्
महौषधि
तरोश्छाया
विष्णवे
'तरोश्छाया' में विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'तरो: + छाया' होता है।
अहंकार
हिमालय
दुष्कर
उल्लास
'दुष्कर' में विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'दु: + कर' होता है।
व्यंजन सन्धि
विसर्ग सन्धि
यण सन्धि
दीर्घ सन्धि
'मनोविज्ञान" में विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'मनः + विज्ञान' होता है।
स्वर सन्धि
इनमें से कोई नहीं
'हरिश्चन्द्र' में विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि विच्छेद 'हरि: + चन्द्र' होता है।
'मनोहर' का सन्धि विच्छेद 'मनः + हर' होता है। यह विसर्ग सन्धि है।
स्वर और व्यंजन सन्धि
'निराशा' शब्द में विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि विच्छेद 'निः + आशा' होता है।
स्वर और विसर्ग सन्धि
निस्संदेह विसर्ग सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'निः + संदेह' होता है।
'पुरस्कार' का सन्धि-विच्छेद 'पुर: + कार' होता है। यह विसर्ग सन्धि है।