UPSSSC PET 2022 15 Oct. 2nd Shift

06. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ- बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं । पुराने समय का 'लालयेत् पञ्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फार्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड़ मिलने के बावज़ूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरंत प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना  काम सँभाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं। और बच्चों पर बोझ आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अंतराल से जीवन मूल्यों में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह संभवतः पीढ़ियों के अंतराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है ?
  संतान के साथ रहने की इच्छा होते हुए भी कई माँ-बाप के अकेले रहने का कारण कौन सा है ? सबसे सबल तर्क कौन सा है ?

  • 1

    माँ-बाप का बीमार और लाचार होना और अपने द्वारा संतान पर किए अहसानों का लगातार गुणगान करते रहना

  • 2

    इनमें से कोई नहीं

  • 3

    माँ-बाप का संतान और उसके परिवार के, प्रति रूखा व्यवहार, वाणी का असंयम और बहू-बेटों की ज़िन्दगी में ज्यादा दखलंदाजी ।

  • 4

    माँ-बाप की आर्थिक स्थिति अच्छी होना 

07. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ- बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं । पुराने समय का 'लालयेत् पञ्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फार्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड़ मिलने के बावज़ूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरंत प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना  काम सँभाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं। और बच्चों पर बोझ आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अंतराल से जीवन मूल्यों में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह संभवतः पीढ़ियों के अंतराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है ?   कौन से बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देने की बात करते हैं ?

  • 1

    जो बच्चे संस्कारहीन और अविवेकी हैं और जो अपने भविष्य को नहीं देख पाते।

  • 2

    जो माँ-बाप बहू-बेटों के परिवार का सहारा बनकर रहते हैं और अपना अभिमत उन पर नहीं थोपते हैं।

  • 3

    जिनके माँ-बाप बच्चों और उनके परिवार को यथोचित सहारा और सम्मान देते हुए अपना जीवन शांति से बिताते हैं।

  • 4

    जिन माता-पिता द्वारा बच्चों को सही संस्कार दिए गए हैं और जो स्वयं संपन्न हैं।

08. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ- बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं । पुराने समय का 'लालयेत् पञ्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फार्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड़ मिलने के बावज़ूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरंत प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना  काम सँभाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं। और बच्चों पर बोझ आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अंतराल से जीवन मूल्यों में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह संभवतः पीढ़ियों के अंतराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है ?
  कौन से माँ-बाप अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह नहीं ताकते हैं ?

  • 1

    जिनके बच्चे संस्कारहीन हैं और माँ-बाप समझदार नहीं हैं।

  • 2

    जिनके पास अब आमदनी का कोई स्रोत नहीं है।

  • 3

    जो माता-पिता बदलते समय के साथ अपने आप को बदल लेते हैं और बहू-बेटों और उनके परिवार को उचित सम्मान देते हैं।

  • 4

    इनमें से कोई नहीं

09. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ- बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं । पुराने समय का 'लालयेत् पञ्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फार्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड़ मिलने के बावज़ूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरंत प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना  काम सँभाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं। और बच्चों पर बोझ आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अंतराल से जीवन मूल्यों में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह संभवतः पीढ़ियों के अंतराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है ?
  आज के बुजुर्गों के लिए बदलते समय की कौन सी सर्वोचित माँग है जिससे वे चैन से अपना बुढ़ापा काट सकें ?

  • 1

    बुजुर्ग अगली पीढ़ी से सम्मान की अपेक्षा नहीं रखें ।

  • 2

    बुजुर्ग अपने हेकड़ी से भरे स्वभाव में बदलाव लाएँ।

  • 3

    बुजुर्ग अपनी जुबान पर संयम रखें ।

  • 4

    बुजुर्ग बुढ़ापे के लिए कुछ अर्जित करके रखें और अगली पीढ़ी के सदस्यों पर न बोझ बनें और न अपनी राय थोपें ।

10. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ- बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं । पुराने समय का 'लालयेत् पञ्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फार्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड़ मिलने के बावज़ूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरंत प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना  काम सँभाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं। और बच्चों पर बोझ आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अंतराल से जीवन मूल्यों में तेज़ी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह संभवतः पीढ़ियों के अंतराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है ?
  माता-पिता द्वारा प्यार-दुलार एवं समस्त संसाधनों के दिए जाने के बावजूद आज की युवा पीढ़ी से वह आत्मीयता ग़ायब है, जो पुरानी पीढ़ी तक विद्यमान थी। इसका सबसे उचित कारण क्या हो सकता है ?
 

  • 1

    युवा पीढ़ी ने दूसरों के कष्टों  के बारे में सोचना बंद कर दिया है।

  • 2

    पीढ़ियों के अंतरण के कारण जीवन मूल्यों के बदलने से युवा पीढ़ी अदूरदर्शी और असहनशील होती जा रही है और उसकी ग्रहणशीलता कम होती जा रही है।

  • 3

    आज के युवा स्वावलम्बी और स्वतंत्र रहना चाहते हैं। वे स्वयं की और परिवार और नौकरी / व्यवसाय की परेशानियों से जूझ रहे हैं।

  • 4

    सभी युवा एक जैसे नहीं होते। कई युवा अभी भी पुराने लोगों को यथोचित सम्मान देते हैं।

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