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स्वरों का
व्यंजनों का
शब्दों का
मात्रा का
स्वर सन्धि में स्वरों का मेल होता है।
गुण सन्धि
दीर्घ सन्धि
यण सन्धि
अयादि सन्धि
‘व्याप्त’ में यण स्वर सन्धि है। इसका सन्धि - विच्छेद ‘वि + आप्त’होता है। यहाँ ‘इ +आ=या’ हो रहा है।
गुण
2.दीर्घॉ
अयादि
यण
‘प्रत्यक्ष’ में यण स्वर सन्धि है। इसका सन्धि विच्छेद ‘प्रति + अक्ष’ होता है। यहाँ ‘इ + अ = या’ हो रहा है।
यण् सन्धि
‘इति + आदि = इत्यादि’ में यण् सन्धि है। इसमें ‘इ + अ’ मिलकर ‘या’ हो जाता है।
दीर्घ
'नायक' में अयादि स्वर सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'नै + अक' होता है।
वृद्धि
'नयन' में अयादि स्वर सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'ने + अन' होता है।
वृद्धि सन्धि
'परमार्थ' में दीर्घ स्वर सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'परम + अर्थ होता है।
यण्
'मतैक्य' में वृद्धि स्वर सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'मत + ऐक्य' होता है।
पुस्तकालय
सद्गति
दिग्दर्शन
उज्ज्वल
'पुस्तकालय' में स्वर सन्धि है। इसका सन्धि-विच्छेद 'पुस्तक + आलय' होता है।
गुण स्वर सन्धि
यण स्वर सन्धि
अयादि स्वर सन्धि
दीर्घ स्वर सन्धि का
'मृगेन्द्र' में गुण स्वर सन्धि है। इसका सन्धि विच्छेद 'मृग + इन्द्र' होता है।