क्षपणक फलित-ज्योतिष के विद्वान थे।
चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के नवरत्नों की प्रसिध्दि रही है।
नवरत्नों में सर्वोत्कृष्ट महाकवि कालिदास थे।
उत्कृष्टता के क्रम में नवरत्नों के नाम- कालिदास, धन्वंतरि, वाराहमिहिर, अमर सिंह, शंकु, क्षपणक, वररूचि, वेतालभट्ट तथा घटकर्पर।
समुद्रगुप्त की साम्राज्य प्रसार की नीतियों से प्रभावित होकर इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ महोदय ने अपनी कृति अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में उसे भारत का नेपोलियन कहा।
समुद्रगुप्त के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
इलाहाबाद के अशोक स्तम्भ अभिलेख से समुद्रगुप्त (335-375 ई.) के शासन के विषय में सूचना प्राप्त होती है।
अशोक द्वारा निर्मित यह स्तम्भ लेख कौशाम्बी से लाकर इलाहाबाद में अकबर ने स्थापित करवाया।
विषयपति के सहयोग हेतु एक समिति होती थी।
इनके सदस्यों को विषयमहत्तर कहा जाता था।
जिसमें निम्न वर्ग आते थे-
1. नगर श्रेष्ठ (पूंजीपति वर्ग का नेता)
2. सार्थवाह (व्यापारिक कारवां का प्रमुख)
3. प्रथम कायस्थ (मुख्य लेखक)
4. प्रथम कुलिस (शिल्पियों व व्यवसायियों का मुखिया)
यह भारत के किसी राजा द्वारा जारी प्रथम स्वर्ण सिक्का माना जाता है।
इसे 127 ईसवी में कुषाण राजा कनिष्क प्रथम द्वारा जारी किया गया था।
यह सबसे भारी स्वर्ण सिक्का था।
यह कुछ विशेष सिक्कों में से है जिन्हें ग्रीक भाषा में और बाद में बैक्टीरिया भाषा में जारी किया गया था जो ईरानी भाषा थी।
गुप्त काल में जारी चांदी के सिक्कों के रूप कहा जाता था।
गुप्त काल में जारी सोने के सिक्कों को स्वर्ण मुद्राएं कहा जाता था।
उस काल में भारत को सोने की चिड़िया कहते थे।
गुप्त काल में जहां संस्कृत विद्वान जनों की भाषा थी, वहीं सामान्य जनों की भाषा प्रकृत थी।
अतः संस्कृत नाटकों में विद्वान लोग संस्कृत भाषा बोलते थे तथा स्त्रियां एवं शूद्रों को प्रकृत भाषा बोलते हुए चित्रित किया गया है।
पुष्यमित्र के आक्रमण के समय ही गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु हो गई।
उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र स्कंदगुप्त सिंहासन पर बैठा।
इसके अपने शासनकाल में सोने का सिक्का जारी किया जिसमें सबसे अधिक मिलावट पाया गया।
कहोम अभिलेख में स्कंदगुप्त को शक्रोपन कहा गया है।
गुप्त काल में राजकीय आय के प्रमुख स्रोत कर थे, जो जो निम्न है -
1. भाग - यह कर राजा को भूमि के उत्पादन से प्राप्त होने वाला छठा हिस्सा था।
2. भोग - संभवतः राजा को हर दिन फल फूल पर दिया जाने वाला कर।
3. प्रणयकर - गुप्त काल में यहां ग्राम वासियों पर लगाया गया कर है।
4. हलदंड कर - यह कर हल पर लगता था।