ऐतमादुद्दौला का मकबरा, आगरा, उत्तर प्रदेश में है।
नूरजहां ने अपने पिता का मकबरा का निर्माण उनकी मृत्यु के लगभग 7 वर्ष बाद 1628 ईसवी में पूरा करवाया।
यह मकबरा चार बाग प्रणाली की एक बाग के मध्य बना है जो चारों ओर ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है।
एक उठी हुई बलुआ पत्थर के चबूतरे पर यह खड़ा है यह मकबरा श्वेत संगमरमर का बना हुआ है।
खुसरो मिर्ज़ा, जहांगीर का ज्येष्ठ पुत्र था।
उसने अपने पिता और उस समय के मुगल शासक जहांगीर के खिलाफ 1605 ई. में विद्रोह कर दिया था।
अबुल हसन यमीनुद्दीन आमिर खुसरो दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे।
इसका परिवार कई पीढ़ियों से राज दरबार से संबंधित था।
नूरजहां से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण घटना उसके द्वारा बनाया गया जुन्टा गुट था जिसमें उसका पिता एतमादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसिफ खान तथा शाहजहां खुर्रम सम्मिलित था।
खुर्रम इस गुट का सदस्य नहीं था।
सम्राट जहांगीर अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए जहांगीर’ में लिखते हैं कि गुलाब से इत्र निकलने की एक विधि नूरजहां बेगम की मां (अस्मत बेगम) ने आविष्कार किया था।
जहांगीर अपनी आत्मकथा फारसी में लिखे हैं।
जहांगीर के समय में चित्रकला को स्वर्ण कला कहा जाता है।
चित्रकला के क्षेत्र में जहांगीर ने सर्वाधिक ध्यान दिया।
वह खुद चित्रकला का पारीख था।
उसके दरबार में अबुल हसन, उस्ताद मंसूर, फर्रूख वेग तथा विशन दास नामक सुप्रसिद्ध चित्रकार थे।
अबुल हसन को उसने ‘नादिर-उज् जमा’ तथा उस्ताद मंसूर को ‘नादिर-उल-असर’ की उपाधि से नवाजा था।
मंसूर दुर्लभ पशुओं, विरले पक्षियों एवं अनोखे पुष्पों का कुशल चित्रकार था।
‘साइबेरिया का बिरला सारस’ इन्हीं की रचना है।
जहांगीर ने 1602 ईसवी में अपने मित्र वीरसिंह देव बुंदेला द्वारा अबुल फजल की हत्या करवा दी जिसे अकबर ने फांसी की सजा दी किंतु वह भाग गया।
जब जहांगीर सिंघासनारूढ़ हुआ तो उसने अपने समर्थकों की एक जमात इकट्ठी की।
उसने अबुल फजल के हत्यारे वीर सिंह बुंदेला को 3000 घुड़सवारों का मनसब प्रदान किया।
अबुल हसन जहांगीर का प्रिय चित्रकार था।
उसे जहांगीर ने ‘नादिर-उल-जामा’ की उपाधि दी थी।
अबुल हसन ने जहांगीर की गद्दी पर आसीन होने का एक चित्र तैयार किया था जिसे बाद में जहांगीर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीर’ के मुख्य पृष्ठ पर लगा दिया गया था।
चिनार के पेड़ पर असंख्य गिलहरियां बैठी है, का चित्र अबुल हसन ने बनाया था।
चित्रकला के क्षेत्र में जहांगीर ने सर्वाधिक ध्यान दिया।
वह खुद चित्रकला का पारीख था।
उसके दरबार में अबुल हसन, उस्ताद मंसूर, फर्रूख वेग तथा विशन दास नामक सुप्रसिद्ध चित्रकार थे।
अबुल हसन को उसने ‘नादिर-उज् जमा’ तथा उस्ताद मंसूर को ‘नादिर-उल-असर’ की उपाधि से नवाजा था।
मंसूर दुर्लभ पशुओं, विरले पक्षियों एवं अनोखे पुष्पों का कुशल चित्रकार था।
‘साइबेरिया का बिरला सारस’ इन्हीं की रचना है।
चित्रकला के क्षेत्र में जहांगीर ने सर्वाधिक ध्यान दिया।
वह खुद चित्रकला का पारीख था।
उसके दरबार में अबुल हसन, उस्ताद मंसूर, फर्रूख वेग तथा विशन दास नामक सुप्रसिद्ध चित्रकार थे।
अबुल हसन को उसने ‘नादिर-उज् जमा’ तथा उस्ताद मंसूर को ‘नादिर-उल-असर’ की उपाधि से नवाजा था।
मंसूर दुर्लभ पशुओं, विरले पक्षियों एवं अनोखे पुष्पों का कुशल चित्रकार था।
‘साइबेरिया का बिरला सारस’ इन्हीं की रचना है।
फ्रंसिसस्को पेलसर्ट एक डच यात्री था जिसने 17वीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में उपमहाद्वीप की यात्रा की थी।
वह यहां के लोगों में व्यापक गरीबी देखकर आश्चर्यचकित था।
उसने कृषकों की अत्यंत दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण है।
इसने जहांगीर के शासनकाल का मूल्यवान विवरण भी दिया है।