औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी प्रिय पत्नी राबिया-उद-दौरनी के मकबरे का निर्माण (1678 ई.) में करवाया था।
इसकी स्थापत्य कला ‘ताज महल’ पर आधारित है।
अतः इसे ‘द्वितीय ताजमहल’ भी कहा जाता है, लेकिन यह मकबरा ‘ताजमहल’ की नकल होने के बावजूद ुतना सुन्दर नहीं है।
मुगल काल में ताँबे का सिक्का ‘दाम’ कहलाता था।
‘रूपया’ चांदी का सिक्का था।
अकबर के समय में निस्की (आधा दाम), दामड़ (चौथाई दाम) दमड़ी (आठवां दाम) नाम के सिक्के प्रचलित थे।
अकबर कालीन मुहर तौल में 170 ग्रेन था।
तांबे का दाम 380 ग्रेन का होता था।
अखिल भारतीय स्तर पर सरकारी कामकाज तथा अन्य बातों के लिए फारसी तथा सांस्कृतिक भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका तथा भक्ति आंदोलन के प्रभाव से प्रांतीय भाषाओं का विकास हो चुका था।
प्रांतीय भाषाओं के विकास का एक और कारण स्थानीय तथा प्रांतीय राजाओं द्वारा दिया गया।
संरक्षण तथा प्रोत्साहन था।
16 वीं और 17 वी शताब्दी में यह धाराएं जारी रही।
अकबर के काल में फारसी के अलावा स्थानीय भाषा भी प्रचलित थी।
गुलबदन बेगम का जन्म 1523 ईस्वी में काबुल में हुआ था और 1603 में उसका स्वर्गवास हो गया।
उनकी मां का नाम दिलदार भी गम था तथा उनके पिता का नाम बाबर था।
गुलबदन बेगम को अपने भाई हुमायूं से बहुत मोहब्बत थी इसीलिए गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा की रचना की थी।
चित्रकला का मुगल कलम भारतीय लघु चित्रकला की रीढ़ है।
मुगल चित्रकला मुख्यतः फारसी या ईरानी चित्रकला से प्रभावित है जो स्वयं में चीनी, भारतीय, बौद्ध, बैक्ट्रियाई और मंगोलियाई चित्रकला शैलियों की विशेषताओं का सम्मिश्रण था।
मुगल चित्रकला का प्रभाव कुछ न कुछ पहाड़ी, कांगड़ा, राजस्थानी शैलियों पर था किंतु कालीघाटी शैली पर मुगल चित्रकला का प्रभाव नहीं था।
चित्रकला का मुगल शैली हुमायूं प्रारंभ किया था।
भारत में पहली बार 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में तंबाकू का सेवन आरंभ हुआ जिसे लाने का श्रेय पुर्तगालियों को जाता है, जो इसे ब्राजील से लेकर आए थे।
यह बहुत ही तेजी के साथ और बहुत ही ज्यादा प्रचलित हुआ और 1617 ई. तक बहुतायक में इसका इस्तेमाल होता रहा जब तक बादशाह जहांगीर ने तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा दिया।
मुगल काल में जनपद को सरकार कहा जाता था।
मुगलकालीन शासन व्यवस्था के बारे में कुछ महत्वपूर्ण कृतियों से जानकारी मिलती है ये कृतियां है -
आईना-ए-अकबरी, दस्तूर-उल-अमल, अकबरनामा, इकबालनामा, दस्तुर-उल-अमल, अकबरनामा, इकबालनामा, तकबाते अकबरी, पादशाहनामा, बहादुरशाहनामा, तुजुक-ए-जहांगीरी आदि।
तुजुक-ए-बाबरी अथवा ‘बाबरनामा’ भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की आत्मकथा जीवनी है।
बाबर ने इस कृति की रचना तुर्की भाषा में की थी।
बाद के समय में बाबर के पोते अकबर ने 1583 ई. में अब्दुल रहीम खाने खाना द्वारा तुजुक-ए-बाबरी का फारसी में अनुवाद करवाया।
यह पुस्तक भारत की 1504 से 1529 ईस्वी तक की राजनीति एवं प्राकृतिक स्थिति पर प्रकाश डालती है।
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 ईसवी को हुआ था।
इसमें बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल वंश की स्थापना की थी।
बाबर ने इस युद्ध में तुगलुमा युद्ध पद्धति व तोपखाने का प्रथम बार प्रयोग किया।
तोपों को सजाने की उस्मानी पद्धति (दो गाड़ियों के बीच तोप रखना) का प्रयोग किया गया।
तोप के प्रयोग के कारण ही बाबर यह युद्ध जीता।
सर - ए - पोल या सर - ए - पुल अफगानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य उत्तर में स्थित है।
इस प्रांत की राजधानी सर - ए - पोल शहर है।
सर - ए - पोल एक पहाड़ी इलाका है।
इसी शहर में सर - ए - पोल की युद्ध बाबर तथा शैबानी खान के बीच हुई थी, जिसमें शैबानी खान की जीत हुई थी।