जोर्वे संस्कृति - जोर्वे संस्कृति ग्रामीण थी फिर भी उसकी कई बस्तियां जैसे दैमाबाद और इनामगांव में नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी।
जोर्वे स्थलों में सबसे बड़ा दैमाबाद है।
ये लोग सर्वप्रथम चित्रित मृदभाण्डों का प्रयोग किये थे जिसमें काले व लाल मृदभाण्ड मुख्यतः थे।
बुर्जहोम - इसका सहित्यिक अर्थ जन्म स्थान है।
यह स्थल श्रीनगर में स्थित है, यह नवपाषाणकालिन स्थल है।
इस स्थल से मानव और पशुपालन दोनो के साक्ष्य मिले हैं।
(1) जौ - वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो सर्वप्रथम जौ 8000 ई.पू. में निकट पूर्व (भूमध्य सागर एवं ईरान के मध्य स्थित पश्चिमी एशिया के देश) में मानव द्वारा उगाया गया।
(2) गेंहूँ - बाद में लगभग इन्हीं क्षेत्रों में 8000 ई.पू. के आस-पास ही गेंहूँ मानव द्वारा उगाया जाने लगा।
(3) चावल - चावल तीसरा खाद्य अनाज है जिसे मानव ने लगभग 7000 ई.पू. के आस-पास चीन के त्यांग्त्जी नदी घाटी क्षेत्र में उगाया।
(4) मक्का - मक्का मध्य एवं दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र में लगभग 6000 ई.पू. में उगाया गया। इसका प्रथम साक्ष्य मेक्सिकों में पाया गया है।
(5) बाजरा - बाजरा 5500 ई.पू. में चीन में,
(6) सोरघम सोरघम 5000 ई.पू. में पूर्वी अफ्रीका में,
(7) राई - राई 5000 ई.पू. में दक्षिण - पूर्व एशिया में,
(8) जई - जई 2300 ई.पू. में यूरोप में सर्वप्रथम मानव द्वारा उगाया गया।
संगनकल्लू - यह नवपाषाणिक स्थल से सम्बन्धित है।
यहीं से राख का टीला प्राप्त हुआ था।
कोलडिहवा - उत्तर - प्रदेश के इलाहाबाद जिले में बेलन नदी घाटी के स्थित है।
पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में लरकाना जिले आस-पास के क्षेत्र की भूमि आश्चर्यजनक रुप से उर्वर है। इसी कारण इसे “नखलिस्तान” या “सिन्ध का बाग” कहा जाता है। मोहनजोदड़ो नामक सैंधव स्थल इसी क्षेत्र में पड़ता है। अतः उपर्युक्त दोनों ही संज्ञाये मोहनजोदड़ो को भी प्राप्त हैं। इसे ‘मृतकों का टीला’ भी कहा जाता है।