मीराबाई का जन्म 1498 ई. को मेवाड़ जिले के कुल देवी ग्राम में हुआ था।
इनके पिता का नाम रतन सिंह राठौर, गुरु का नाम रैदास तथा पति का नाम भोजराज (राणा मान सिंह का पुत्र) है।
खानवा के युद्ध में (1527) में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए इनके पिता रतन सिंह युद्ध में मारे गए कुछ समय बाद राणा सांगा की भी मृत्यु हो गई।
कबीर का जन्म 1398 ई. में बनारस में हुआ था।
इन्होंने हिंदू मुस्लिम धर्म में व्याप्त कुरीतियों का विद्रोह किया।
कबीर के दर्शन पर आधारित वचनों का संग्रह ‘बीजक’ है।
नानक का जन्म 1469 ई. में को गुजरात वाला में हुआ था।
नानक एकेश्रखादी थे।
इन्होंने मूर्ति पूजा का विद्रोह किया और सिख संप्रदाय की स्थापना की।
तुलसीदास का जन्म 1511 ई. में उत्तर प्रदेश में हुआ था, तथा इनकी मृत्यु 1623 ई. में हुआ था।
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ईसवी में हो गई थी।
इनके जन्म और मृत्यु के दौरान भारत में मुगल साम्राज्य के शासक अकबर तथा जहांगीर थे।
इस महाकाव्य की भाषा अवधी है रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचंद्र के निर्मल एवं विशद चरित्र का वर्णन किया है।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है।
श्रीनिवास रामानुजाचार्य वेदांत दर्शन परंपरा में विशिष्टाद्वैत के प्रवर्तक है।
उपनिषद, भागवत गीता एवं ब्रह्मसूत्र के श्री शंकराचार्य के अद्वैतपरक व्याख्या के प्रतिपाद के रूप में रामानुज ने विशिष्टाद्वैत का प्रतिपादन किया है।
इनके समय में जैन और बौद्ध धर्म के प्रचार के कारण वैष्णव धर्म संकट ग्रस्त था।
रामानुज ने इस संकट का वैष्णव धर्म संकटग्रस्त का सफलतापूर्वक प्रतिकार किया।
चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं।
इन्होंने वैष्णव के गौड़ीय संप्रदाय के आधार शिला रखी।
भजन गायकी की एक नई शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक स्थिरता के दिनों में हिंदू मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया।
कामरूप (असम) वैष्णव धर्म को लोकप्रिय बनाने वाले संकरदेव थे।
इनका समय 1449 - 1568 ई. तक था।
इसका संदेश विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के प्रति भक्ति पर केंद्रित था।
एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार था।
इनके द्वारा स्थापित संप्रदाय एक शरण संप्रदाय के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
शंकरदेव मूर्ति पूजा और कर्मकांड दोनों के विद्रोही थे।
नामदेव ने ब्राह्मणों की प्रभुता को चुनौती दी तथा जाति प्रथा का विरोध करते हुए सभी जाति के लोगों को अपना शिष्य स्वीकार किया।
अपने अनुयायियों वासियों के मध्य इन्होंने ईश्वर के प्रति बिना शर्त प्रेम और समर्पण का उपदेश दिया।
भक्ति आंदोलन में संतों में नामदेव इस्लाम से अत्यधिक प्रभावित थे।
यह वरकरी संप्रदाय का संत भी था।
कामरूप (असम) वैष्णव धर्म को लोकप्रिय बनाने वाले संकरदेव थे।
इनका समय 1449 - 1568 ई. तक था।
इसका संदेश विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के प्रति भक्ति पर केंद्रित था।
एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार था।
इनके द्वारा स्थापित संप्रदाय एक शरण संप्रदाय के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
शंकरदेव मूर्ति पूजा और कर्मकांड दोनों के विद्रोही थे।
कबीर रामानंद के शिष्य थे।
रामानंद भक्ति काल के प्रमुख संत थे।
कबीर के 12 शिष्य - अनंतनांद, शसरुरानंद, सुखानंद, नारारीदास, भवानंद, भगत पिपा, कबीर, सेन, धन्ना, रविदास और दो महिला शिष्य सुश्रुरी और पद्यवती थे।