प्रयोग एवं पर्यवेक्षण
संवाद एवं परिचर्चा
दिए गए ज्ञान को दोहराने पर ध्यान केंद्रित करना
बच्चों को अंतर्दृष्टि के द्वारा अनुमान लगाने के लिए प्रोत्साहित करना।
बालकों का संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोचालक पक्षों का विकास होगा।
पढ़ने-लिखने एवं गणितीय कुशलताओं पर ही बल होगा।
शिक्षक अधिगम प्रक्रिया में आगे होकर बालकों को निष्क्रिय रखेगा।
शिक्षण व्यवस्था एकाधिकारवादी होगी।
प्रस्तावित करता है कि वंचित पृष्ठभूमि वाले बच्चों में अधिगम का सामर्थ्य नहीं होता है।
निर्दिष्ट करता है कि विद्यालय इन बच्चों की आवश्यकताओं और रूचियों की पूर्ति करने में समर्थ नहीं है।
साबित करता है कि इन बच्चों में आनुवंशिक पैदाइशी कमियां है और इन्हें विद्यालय से निकाल देना चाहिए।
सूचित करता है कि अभिभावकों में अपने बच्चों के अधिगम में सहायता करने का सामर्थ्य नहीं है।
बच्चों को सूचनाएं लिखाकर उन्हें याद करने को कहकर।
यदि बच्चों की अवधारणाएं गलत हों, तो उन्हें दंड देकर।
तथ्यात्मक जानकारी देकर।
अवधारणाओं के बारे में बच्चों को अपनी समझ को व्यक्त करने का अवसर देकर।
सीखने के गतिक क्षेत्र
सीखने के भावनात्मक क्षेत्र
सीखने के मनोवैज्ञानिक क्षेत्र
सीखने के संज्ञानात्मक क्षेत्र
शिक्षाणार्थी का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
प्रेरणा और उपलब्धि का अभिप्रेरण स्तर
उत्सुकता और इच्छाशक्ति
सभी
का उत्साह भंग हो जाता है तथा वे दबाव में आ जाते हैं।
किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होते हैं।
सीखने के लिए उत्सुक एवं प्रेरित रहते हैं।
निश्चित हो जाते हैं तथा सीखने के लिए किसी भी तरह का प्रयास करना बंद कर देते हैं।
बच्चे द्वारा भाषाई प्रयोग के नियम पकड़ना।
बच्चे का उच्चारण
व्याकरण का ज्ञान
पाठ्य पुस्तकों की सामग्री
जिज्ञासु प्राणी होते हैं, जो अपने चारों ओर के जगत को खोजने के लिए अपने ही तर्कों और क्षमताओं का उपयोग करते हैं।
चिंतन में वयस्कों की भांति ही होते हैं और ज्यों-ज्यों वे बड़े होते हैं, उनके चिंतन मे गुणात्मक वृद्धि होती है।
रीते बरतन के समान होते हैं, जिसमें बड़ी के द्वारा दिया गया ज्ञान भरा जाता है।
निष्क्रिय जीव होते हैं, जो प्रदत्त सूचना को ज्यों-की-त्यों प्रतिलिपि के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।