म.प्र. के पाषाणकालीन स्थल भीमबेटका से चित्रकारी से युक्त 500 शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
यूनेस्कों ने भीमबेटका शैल चित्रों को विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया हैं।
(1) जौ - वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो सर्वप्रथम जौ 8000 ई.पू. में निकट पूर्व (भूमध्य सागर एवं ईरान के मध्य स्थित पश्चिमी एशिया के देश) में मानव द्वारा उगाया गया।
(2) गेंहूँ - बाद में लगभग इन्हीं क्षेत्रों में 8000 ई.पू. के आस-पास ही गेंहूँ मानव द्वारा उगाया जाने लगा।
(3) चावल - चावल तीसरा खाद्य अनाज है जिसे मानव ने लगभग 7000 ई.पू. के आस-पास चीन के त्यांग्त्जी नदी घाटी क्षेत्र में उगाया।
(4) मक्का - मक्का मध्य एवं दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र में लगभग 6000 ई.पू. में उगाया गया। इसका प्रथम साक्ष्य मेक्सिकों में पाया गया है।
(5) बाजरा - बाजरा 5500 ई.पू. में चीन में,
(6) सोरघम सोरघम 5000 ई.पू. में पूर्वी अफ्रीका में,
(7) राई - राई 5000 ई.पू. में दक्षिण - पूर्व एशिया में,
(8) जई - जई 2300 ई.पू. में यूरोप में सर्वप्रथम मानव द्वारा उगाया गया।
भीमबेटका - क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया।
इसके बाद जुलाई 2003 में युनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
नवीनत्तम खोजों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनत्तम कृषि साक्ष्य वाला स्थल उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिलें में स्थित लहुरादेव है।
यहां से 8000 ई.पू. से 9000 ई.पू. मध्य के चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
इस नवीनतम खोज के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला स्थल मेहरगढ़ (पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित→ यहां से 7000 ई.पू. के गेहूँ के साक्ष्य मिले हैं) जबकि प्राचीनत्तम चावल के साक्ष्य वाला स्थल कोलडिहवा (इलाहाबाद जिले में बेलन नदी तट पर स्थित, यहां से 6500 ई.पू. के चावल की भूसी के साक्ष्य मिले है) माना जाता था।
मेहरगढ़ - यह नवपोषाणकालीन स्थल है, यहां से कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य के अन्तर्गत गेहूँ की 3 व जौ की 2 किस्मों की खेती व कच्ची ईटों के आयताकार मकान के साक्ष्य भी मिले हैं।
महदमा - यह स्थल उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है।
यहाँ से 28 मानव समाधि, 35 गर्त चुल्हे, युगल समाधि तथा पुरूष कंकाल के ऊपर स्त्री कंकाल का साक्ष्य मिला है।
बुर्जहोम - इसका सहित्यिक अर्थ जन्म स्थान है यह स्थल श्रीनगर में स्थित है, यह नवपाषाणकालिन स्थल है।
इस स्थल से मानव और पशुपालन दोनो के साक्ष्य मिले हैं।