1498 ई. में वास्कोडिगामा कालीकट में उतरा तो वहां बसे हुए रवि व्यापारियों की बस्ती में उसके प्रति वैमनस्य का रवैया अपनाया किंतु जमोरिन ने पुर्तगालियों का स्वागत किया और उन्हें काली मिर्च और जड़ी-बूटी इत्यादि ले जाने की आज्ञा दी
पुर्तगाल में वास्कोडिगामा द्वारा लाया गया माल सारे अभियान के व्यय से 60 गुना अधिक व्यय पर बिकता था।
भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 में कोचिग में हुआ।
भारतीय राज्यों के मध्य राजनीतिक सर्वोच्चता एवं क्षेत्रीय विस्तार के संघर्षों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को इन राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का सुनहरा अवसर प्रदान किया।
जहां तक मराठों के क्षेत्र का प्रश्न है तो यहां ब्रिटिश हस्तक्षेप का मुख्य कारण वाणिज्यिक था।
भारत में अंग्रेजों का सबसे ज्यादा विरोध मराठों ने किया था।
ईस्ट इंडिया कंपनी एक निजी व्यापारिक कंपनी थी, जिसमें 1600 ईसवी में ऐसा ही अधिकार पत्र द्वारा व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था।
इसकी स्थापना 1600 ईसवी के अंतिम दिन महारानी एलिजाबेथ प्रथम के एक घोषणा पत्र द्वारा हुई।
यह लंदन के व्यापारियों की कंपनी थी जिसे पूर्व में व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया था।
कंपनी का मुख्य उद्देश्य धन कमाना था।
1708 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रतिद्वंदी कंपनी ‘न्यू कंपनी’ का ईस्ट इंडिया कंपनी में विलय हो गया।
पुर्तगालियों की भांति डच भी भारत में व्यापार के उद्देश्य से भारत आए थे।
भारत में ‘डच ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना 1602 में हुई थी।
बच्चों की पहली व्यापारिक कोठी 1605 में मसूलीपट्टनम में स्थापित की।
इसके बाद 1610 में कालीकट, 1616 में सूरत, 1641 में बिमिलीपट्ट्म, 1695 में करिकल में एवं समय - समय अन्य स्थानों पर अपनी फैक्ट्रियां स्थापित की।
आधुनिक ढंग की सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकाता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गई थी किंतु यह असफल रही।
पुनः 1851 में मुंबई में एक मिल स्थापित की गई जो, असफल रही।
सबसे पहला सफल आधुनिक कारखाना 1854 में मुंबई में ही कावसजी डाबर द्वारा खोला गया जिसमें 1856 में उत्पादन प्रारंभ हुआ।
भारत के साथ व्यापार के लिए सर्वप्रथम संयुक्त पूंजी कंपनी 10 लोगों ने आरंभ की 10 लोग हालैंड के निवासी थे।
1596 ई. में भारत आए थे।
1602 ई. में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भी की थी।
बंगाल के चिनसुरा में डचों ने एक कारखाना भी स्थापित किया था।
डच लोगों का मुख्य उद्देश्य दक्षिण पूर्वी एशिया के टापू पर व्यापार करना था।
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 ई. को लड़ा गया था।
अंग्रेज और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेनाओं 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में भागीरथी नदी के किनारे प्लासी नामक गांव में आमने-सामने आ गई।
यद्यपि प्लासी का युद्ध एक छोटी सी सैनिक झड़प थी, लेकिन इससे भारतीयों की चारित्रिक दुर्बलता उभरकर सामने आ गई।
भारतीय इतिहास में इस युद्ध का महत्व इसके पश्चात होने वाली घटनाओं के कारण है निसंदेह भारत में प्लासी के युद्ध के बाद दासता के उस काल की शुरुआत हुई जिसमें इसका आर्थिक एवं नैतिक शोषण अधिक हुआ।
दक्षिण पूर्व एशिया के मसाला द्वीपों में सीधा प्रवेश प्राप्त करने के उद्देश्य से डचों ने 1596 ई. से कई बार समुद्रिक यात्राएं की अंततः 1602 ईसवी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की धीरे-धीरे मसाला में उन्हीं को हराकर प्रभुत्व स्थापित किया।
व्यापारिक स्वार्थों से प्रेरित होकर डच भारत भी आए।
यहां उन्होंने गुजरात में कोरोमंडल समुद्र तट पर व्यापारिक कोठियां स्थापित की।
1605 ई. में मूसलीपट्टम में उनकी प्रथम कोठी स्थापित हुई।
कोरोमंडल से वे सूती वस्त्र, मालाबार से मसालों का निर्यात करते थे।
विलियम हॉकिंस एक व्यापारी था और ईस्ट इंडिया कंपनी का कर्मचारी था।
वह भारत में जहांगीर के समय में आया था और 1608 ई. से 1613 ई. तक ठहरा।
थॉमस बेस्ट ने पुर्तगालियों को सौली नामक स्थान पर 9 - 10 दिसंबर 1612 ई. को पराजित किया था।
यह सौली (सूरत) के पास स्थित है।
यह पुर्तगालियों की एक प्रमुख हार थी।
सर थॉमस रो ने मुगल दरबार में सन 1615 ई. में आया।
सन् 1619 ईस्वी में वह बादशाह का इस आशय का फरमान होकर इंग्लैंड लौट गया कि मुगल दरबार में अंग्रेजों का इसी तरह स्वागत किया जाता रहेगा।
वांडीवाश का युद्ध वर्ष 1760 में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य लड़ा गया था।
युद्ध में फ्रांसीसियों की हार हुई और उन्हें पांडिचेरी अंग्रेजों को सौंपना पड़ा।
बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने वांडीवाश का युद्ध छेड़ा और फ्रांसीसियों को पराजित किया।
इस विजय के साथ ही अंग्रेजों ने भारत में फ्रांसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी।